आई विटनेस न्यूज 24, गुरुवार 10 अक्टूबर,भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसके अर्थव्यवस्था का एक बड़ा भाग दशकों से कृषि पर आधारित हैं। परन्तु फसल अवशेषों का प्रबंधन एक प्रमुख चुनौती हैं सामान्यतः किसान अपनी सुविधा और आसान तरीके को अपनाते हुए फसल अवशेष को खेतो में जलाकर इसका प्रबंधन करते हैं। परन्तु फसल अवशेष जलने से खेत की मृदा, वातावरण, मनुष्य एवं पशुओं के स्वास्थ्य के लिए अत्याधिक घातक एवं गंभीर परिणाम देते हैं।
फसलों की कटाई के बाद बचे हुए डंठल तथा गहाई के बाद बचे हुए पुआल, भूसा, जमीन पर पड़ी हुई पत्तियां इत्यादि फसल अवशेष/नरवाई कृषको के लिए मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन है। यह फसल अवशेष मृदा में कांर्बनिक पदार्थ, विभिन्न पोषक तत्व एवं मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
फसल अवशेष प्रबंधन/नरवाई प्रबंधन :-
हैप्पी सीडर द्वारा गेंहू की बुवाई करें, यह धान की कटाई के उपरांत बचे अवशेष को टुकड़े में बदलकर बुवाई की गई फसल पर पलवार के रूप बिछा देता है। जिससे मृदा में बीज अंकुरण के लिए पर्याप्त मात्रा मे नमी सरंक्षित होती है।
कटाई उपरांत खेत में बचे फसल अवशेष, घास-फूस, पत्तियां इत्यादि को सड़ाने के लिए फसल काटने के बाद 20-25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर रोटावेटर मिट्टी में मिला देना चाहिए। पूसा डी कम्पोजर का उपयोग करे, यह फसल अवशेषों को लाभदायक कृषि अपशिष्ट खाद में बदल देता है। फसल अवशेषों को खेत से हटाकर दूसरे कार्यों जैसे पशुओं के चारे, जैव ईंधन एवं कम्पोस्ट बनाने के तौर पर भी इसका उपयोग किया जा सकता है।
अतः कृषकों से अपील किया जा रहा है कि फसल अवशेष/नरवाई न जलाएं एवं समुचित फसल अवशेष प्रबंधन उपाय अपनाएं।
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