आई विटनेस न्यूज 24,शनिवार 14 जून,जिले में अन्नदूत योजना के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से उचित मूल्य दुकानों तक राशन पहुँचाने वाले वाहनों में ओवरलोडिंग का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। तीन वर्षों से इस मुद्दे पर लगातार खबरें प्रकाशित होने के बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा कोई ठोस कार्रवाई न किया जाना कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
ताजा मामला सामने आया है जब अन्नदूत वाहन क्रमांक MP52 ZA 4654 में 20 मेट्रिक टन से अधिक राशन लादकर पुरानी डिंडोरी की उचित मूल्य दुकान तक पहुँचाया गया, जबकि वाहन की अधिकृत क्षमता मात्र 7.5 टन है। यह राशन जुलाई माह के लिए था, यानी सिर्फ एक महीने की आपूर्ति। सेल्समैन के अनुसार, हर बार इतनी या इससे थोड़ी कम मात्रा में राशन इसी तरह ओवरलोड कर लाया जाता है।
प्रशासनिक तर्क असंगत
जब इस मुद्दे पर अधिकारियों से सवाल किया गया, तो उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि शासन ने आगामी तीन महीनों का राशन अग्रिम रूप से भेजने के निर्देश दिए हैं, इसलिए फिलहाल ओवरलोडिंग हो रही है। लेकिन सवाल उठता है कि यदि राशन ज्यादा है, तो क्या उसे अन्य वैकल्पिक साधनों जैसे कि किराये के वाहन या ठेका गाड़ियों के जरिये नहीं पहुँचाया जा सकता? क्या नियमों की अवहेलना कर ओवरलोडिंग को जायज ठहराया जा सकता है?
अधिकारियों की संदिग्ध चुप्पी
स्थानीय प्रशासन से दूरभाष पर बात करने पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ‘ऊपर से साहब आए थे, उन्होंने अन्नदूत पर लगाई गई 181 शिकायतें बंद करने को कहा, और जैसा चल रहा है वैसा ही चलने दो, हम देख लेंगे।’ ऐसी टिप्पणियाँ इस आशंका को और बल देती हैं कि ओवरलोडिंग का यह खेल उच्चस्तरीय संरक्षण में फल-फूल रहा है।
लाभ कमाने की होड़ में नियमों की अनदेखी
अन्नदूत वाहन संचालकों का कहना है कि यदि ओवरलोडिंग नहीं करेंगे तो मुनाफा नहीं होगा। जबकि उन्हें 7.5 टन की अधिकतम क्षमता के अनुसार प्रति क्विंटल ₹65 की दर से भुगतान किया जाता है, जो निजी वाहनों से दोगुनी दर है। इसके बावजूद नियमों को ताक पर रखकर ओवरलोडिंग करना भ्रष्टाचार और लालच की ओर इशारा करता है।
ओवरलोडिंग न केवल नियमों का उल्लंघन है बल्कि यह सड़क सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा है। भारी वजन से वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो सकते हैं, जिससे जान-माल की हानि संभव है। लेकिन इन तमाम जोखिमों के बावजूद अधिकारी मौन हैं और ओवरलोडिंग बदस्तूर जारी है।
अब समय आ गया है कि शासन इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान ले और दोषियों पर कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करे। यदि अन्नदूत योजना के नाम पर भ्रष्टाचार और अनियमितता की यह श्रृंखला ऐसे ही चलती रही, तो इससे न केवल सरकारी योजनाओं की साख पर सवाल उठेंगे, बल्कि जनहित भी बुरी तरह प्रभावित होगा।